जैन स्थानक, मारुती विधि सिकंदराबाद में उपाध्याय पू. श्री प्रवीणऋषीजी म. सा. ने सुधर्मा स्वामी द्वारा रचित परमात्मा प्रभु महावीर की स्तुति गान ”विरत्तुई” की १२ दिवसीय प्रवचन श्रुंखला में गाथा का विवेचन करते हुए कहा
एक छोटे से पेड को सुधर्मा स्वामी ने परमात्मा के ज्ञान, शिल के साथ जोडा – शाल्मलि वृक्ष ! रूक्खे सुनाये जह सामलि वा ! जंसि रति वेदयंति महिंदा । दशहरे के दिन सोने के रूप में जिसके पत्ते भेट किये जाते है । आगम का संदर्भ है , असुरों में सुर्वणकुमार का ये प्रियतम वृक्ष है । उसे फल भी नही लगते, फुल भी नही लगते । इसका कारण है, फल फुलोंकी ताकद उसके पत्तों में आ गई है । परमात्मा के ज्ञानकी तुलना की है । बाकी देवता ओं के पास ज्ञान है लेकिन अपना उपदेश पुरा करने के लिये काम करना पडता है । जब ज्ञान परिपुर्ण नही होता है , तब कुछ करना पडता है । परमात्म का ज्ञान परिपुर्ण हो गया है । जो पत्ता अपने आप में परिपुर्ण नही होता है उसे फुल और फल की जरूरत होती है ।
वड, पिंपल, बरगद, आम , नारियल आदि पवित्र परिपुर्ण वृक्ष में शल्मलि वृक्ष को नही जोडा गया । एक शाल्मलि वृक्ष नरक में भी होता है उसे कुट शाल्मलि वृक्ष कहते है । उसे काॅंटे नही लगते ,लेकिन उसके पत्ते ही आरी जैसे होते है । केर तो जहरिला होता है , हम तक शुध्दीकरण करके पहुंचता है । केर के पेड को पत्ते नही लगते । सुधर्मा स्वामी के अलवा कोई परमात्मा के ज्ञान ओर शिल को शाल्मलि वृक्ष की उपमा देने की सोच भी नही सकता । परमात्मा का ज्ञान शिल, कल्याण करने में , समृध्द करने में श्रेष्ठतम है ।
हमारी प्रज्ञा वासना की हो गई है । कोई समृध्दी , सुरक्षा की सोचता ही नही । काश ! हम सब की प्रज्ञा सुख की, समृध्दी , सुरक्षा हो जाय । प्रज्ञा जब तक समृध्द नही होती तब तक बाहर से कितने भी श्रीमंत हो जाओ कोई काम नही आता ।
सुधर्मा स्वामी भुईपण्णे शब्द उपयोग बार2 क्यों करते है ? जिसके विषय में परमात्मा का ज्ञान समृध्द हुआ वो समृध्द हो गया । परमात्मा की प्रज्ञा का प्रयोग अर्जुनमाली पर हुआ और माली सिध्द हो गया । कितनी समृध्द है परमात्मा की प्रज्ञा , सुदर्शन की सुरक्षा हो गई , मुद्गरपाणी कुछ नही कर पाया । सिंधु सोमिल का राजा उदयन दिक्षा बाद अपने ही राज्य में निर्वासन की सजा भुगतता है । जिसे राज्य सोंपा उस, भाणजे का दिमाग फिर गया । जिस घर को आपने बनाया उसमें कोई आपको आने से मनाई करे तो क्या बितेगी ? वही उदयन पर बिती होगी लेकिन परमात्मा की समृध्द प्रज्ञा के साथ जुडने के कारण उसे कोई फर्क नही पडा , बाहर की दरिद्रता उनको छु नही पायी । हमारे प्रयास तिजोरी भरने के चलते है , हम प्रज्ञा सुरक्षा करने की हम प्रज्ञा नही सोचते । अंधे के हाथ में सों सुरज रखे तो भी उजीयाला नही हो सकता । जिसमें दिमाग समृध्द ओर दिल कमजोर होता है उसे ज्ञानी कहते है । जिसमें दिल समृध्द ओर दिमाग कमजोर होता है उसे पागल कहते है । जिसमें दिल ओर दिमाग में दूरी नही रहती उसे प्रज्ञाशिल कहते है ।
सुधर्मा स्वामी ने केवल एक बार अनंत ज्ञानी कहा ,बाकी हर बार प्रज्ञा शब्द प्रयोग किया । तपस्वी राज गणेशलालजी म.सा. ने सबसे ज्यादा विरोध करने के बावजुद उनके सर्वाधिक फोटो लगे है । प्रज्ञा बहोत बडा बरदान है । किसी से वरदान माॅंगो तो भूती प्रज्ञा का माॅंगो । कभी हम दिमाग से कभी दिल से परेशान रहते है । जिसे दोनों बिमारीयाॅं नही रहती तो समृध्द प्रज्ञावान होता है । सुधर्मा स्वामी उसे शाल्मलि वृक्ष कहते है । वणेसु वा नंदन माहु सेठठं ! एक तरफ शाल्मलि वृक्ष ओर दुसरी उपमा नंदनवन की देते है । सारे वन में श्रेष्ठ नंदनवन है परमात्मा का ज्ञान शिल नंदनवन समान है । उनके शिल ओर ज्ञान में भी सुगंध है ।
ज्ञानेश्वर ने ज्ञानेश्वरी ग्रंथ मेे गिता का कुरूक्षेत्र के रणभूमि का वर्णन करते2 अहिंसा की बात की है । तो उनके सारे भक्त शाकाहारी है । उन्हों ने पसायदान अर्थात् प्रसाद माॅंगा । इसका मुल शब्द जैन आगम है तिथ्थ्यरा में पसियंतु ! वरदान नही प्रसाद माॅंगा । वैदिक परंपरा में वरदान माॅंगते है । वरदान शाप कब बनेगा कह नही सकते । जिस सुरज में ताप नही वो सुरज ! जिस चंद्रमा में कलंक नही वो चंद्रमा ! थणियं व सद्याण अनुत्तरे उ , चंदो व तारा न महानुभावे । गंधेसु वा चंदण माहु सेठठं, एवं मुणिण्ंा अपडिण्ण माहु । परामात्मा की वाणी की तुलना मेघगर्जना के साथ की है । श्रेष्ठतम गर्जना मेघगर्जना है । उजाला पहले आवाज बाद में आती है । परमात्मा के भाव पहले पहुँच जाते है बाद में शब्द पहुचते हे । इंद्रभुती परमात्मा के सामने जाकर खडे रहे ओर कृपा पहुच गई । शब्द बाद में पहुचे ।
तारामंडल में जैसा चंद्रमा , गंध में सर्वश्रेष्ठ चंदन जैसा । जितना घिसोगे उतनी बढती जाती है । चंदन के गंध में उत्तेजना नही आती । शितल , शांत गंध है । अप्रतीग्य अर्थात् कोई शर्त नही । जहा संयंभु उदहिण सेठठे ! धरणेंद्र कुमार समान श्रेश्ठ है । शुद्र जाती में जन्म कर ब्राम्हणों से उंचा हो जाय वो बाबासाहेब अंबेडकर बन जाते है । वैसे ही धरणेंद्र एक बात में श्रेष्ठ है वो अपने उपकारी के उपकार नही भुलता है । धरणेंद्र से ज्यादा ऐश्वर्य दुसरे असुर कुमारों का है वैक्रिय शक्ति भी दुसरों की ज्यादा है लेकिन केवल अंतीम समय में पंच परमेष्ठी का शरणा देने का उपकार नही भुला इसलिये सर्वश्रेष्ट बन गया । तीर्थंकर के जीव ने कितने ही जीवों को देवलोक मे पहुंचाया होगा लेकिन केवल धरणेंद्र कुमार को याद रही ।
४ अक्तूबर को वीर लोकाशाह जयंती के साथ ही चातुर्मास का समापन होगा I श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी संघ , सिकंदराबाद से विहार की आज्ञा लेकर अहमदनगर की और प्रस्थान करते हुए उपाध्याय श्री आदि ठाना दिनांक ४ नवम्बर शाम को लीजेंड अपार्टमेन्ट पहुंचेंगे I ५ अक्तूबर को बेगम पेठ श्री अशोक जी कोठारी के यहाँ पर विराजेंगे I रविवार को यहाँ पर आखिल भारतीय आनंद तीर्थ धर्म संघ द्वारा उपाध्याय श्री के त्रय नगर यात्रा दौरान सहयोगी सभी कार्यकर्ताओं का अभिनंदन तथा कृतज्ञता समारोह का आयोजन किया है I संत वृन्द ६ नवम्बर को श्री मोतीलाल जी भलगट , खेर्ताबाद के प्रांगण में पधारेंगे तथा शाम को बंजारा हिल्स स्थित किमती परिवार के निवास स्थान पर विराजेंगे I आगे कुकुट पल्ली , मियाँ पुर की और विहार होगा I ये जानकारी मंच संचालन करते हुए चेअरमन श्री संपत राज कोठारी ने दी I
उपाध्याय श्री आदि ठाणा 2 चातुर्मास पष्चात आचार्य आनंदऋषीजी म.सा. की जन्मभूमि ग्राम चिचोंडी , जिला अहमदनगर महाराष्ट्र की ओर प्रस्थान करेंगे । उपाध्याय श्री के मार्गदर्शन से चिचोंडी में प्रस्तावीत ‘आनंदतीर्थ’ प्रकल्प के पहले चरण में ‘आनंद गुरूचरण तीर्थ’ का गुरू चरणों में समर्पण समारोह दिनांक 17 डिसंबर को आयोजीत किया जा रहा है । हेम्कुल दिवाकर श्री ऋषभ मुनिजी म.सा. उप प्रवर्तक श्री आशीश मु निजी म.सा. हैदराबाद में ही विचरण करेंगे I आप श्री का आगामी २०१८ का चातुर्मास भीष्म पितामह पू श्री सुमति प्रकाश जी म.सा. आदि ठाना के साथ त्रय नगर में होगा I