हत्थी सु एरावण माहु णाये , सिओ मियाणं सलीनााण गंगा ! हर धर्म का अंतीम लक्ष होता है जन्म मरण के चक्कर से मुक्ति । जीवन सुखी होना ये किसी धर्म का लक्ष नही । संसारमें वृध्दी करना , संसारी जीव को सुखी बनाना ये किसी धर्म का उद्येश नही । जेल में रहनेवाले कैदी को जेल से मुक्त करना की जेल में सुवीधा देना ? जेल में सुख सुवीधा मिली तो जेल से बाहर आने की कोई सोच नही सकेगा । इसलिये जो संसारी जीव को सुखी करने का प्रयास करते है वो अध्यात्मसे दूर करते है । इसी आधर पर जैन धर्म में ये धारणा है , जो तन को स्वस्थ करने के लिये वैद्यकी का व्यवसाय करते है उनकी अधोगति बताई है । किसी वैद्य हकिम, डाॅक्टर को शरीर को सुखी बनाने का विधान करने वाला जैन धर्म क्या सोच रखता हो शरीर को सुखी बनानेवाले प्रयास में वो आत्मा को भुल जाता है । जो शरीर को स्वस्थ करने के प्रयास में उलझकर रह गया । वो आत्मा की यात्रा कर नही पायेगा ।
तन कांच का बर्तन है । आज नही कल नष्ट होना ही है । कितना ही संभालो टुटना ही है । इसको संभाालने के लिये आत्मा की हत्या नही की जा सकती । संयम मुल्य को तिलांजली देकर इसे संभालना समझदारी नही । कत्तलखाने खोलनेवाले, शराब पिनेवाले महात्मा गांधी की जयंती मनाते है । निर्वाण ये अंतीम ध्येय है । श्रावक, श्रावीका साधु साघ्वी बनना है तो संसार का सुख पाने के लिये नही , इस लोक और पर लोक का सुख पाने के लिये नही । लोक का सुख जन्म2 तक प्राप्त किया है । आज दिन तक नही प्राप्त किया है तो वो मोक्ष है ।
सुख में से दुःख का नरक जन्म ने ही वाला है । जिस साधक का लक्ष्य मोक्ष नही उसके सुख में से नरक का जन्म होता ही है । चक्रवर्ती ने संयम नही लिया तो उसने नरक में जाना ही है । संयम कोई सुख संविधा के लिये नही । संयम शारीरिक अनुकुलता के लिये नही । संयम का एक ही लक्ष है मोक्ष । मोक्ष की बात सभी करते है , हाथी सब है , लेकिन ऐरावत समान भगवान महावीर है । ‘महा’ वीर इसलिये है की अपने सामने सर्वानुभूती और सुनक्षत्र अणगार को जलते उनके तन को नही बचाया । उनकी आत्मा को बचाया । आत्मा ने उस समय मोक्ष का ध्येय सामने रखा । क्या गोषालक की तेजोलेश्या से अपने दो संतो को बचा नही सकते थे ? परमात्मा वीतरागी थे । इंद्रभुती , सुधर्मा स्वामि बचा लेते वो तो छद्मस्त थे । तन को बचाना ये संयम का ध्येय नही । इसलिये सुधर्मा स्वामी कहते है कहते है , निर्वाण की चर्चा करने में परामात्मा प्रभु महावीर हाथी यों में ऐरावत जैसे है ।
सिओ मियाणं सलीनााण गंगा ! बाकी मोक्ष की चर्चा करने वाले पशु के समान तथा परमात्मा उन पशु ओं में शेर के समान है । दुःख आने बाद हम किसकी श रण में जाते है , ये परमात्मा के प्रती हमारा प्यार टटोलने की कसोटी है । देव गुरूधर्म कर शरण में जाते है , की सत्ता ओर संपत्ती की श रण में जाते है । परमात्मा जब निर्वाण की चर्चा करते है तब शेर समान करते है , गाय ओर बकरी के समान नही करते ।
कोई तपस्या के बीच में किसी भी प्रकार का बाहय उपचार लेते है , तो पारने से पहले प्रायष्चित आता है । हमारा लक्ष्य क्या है ? सुधर्मा स्वामी के साथ परामात्मा की यात्रा करते समय दिमाग पर दबाव आना ही है ।
संतो के वैयावच्च के नाम पर करोडो रूपये जमा होने लगे , संतों के नाम से फंड इकट्टा किये जाय । संत अपरिग्रही है । पांचवा महाव्रत परिग्रह त्याग का है । उसके विकास के लिये फंड की क्या आवष्यकता ? लेकिन सारे चुप चाप है, कोई बोलता नही । किधर ले जा रहे है संतों को ? जैन सिध्दांत की हत्या हो रही है । अणगार के नाम से सत्ता संपत्ती का संग्रह हो जाय ओर फिर वो महावीर का अणगार रह जाय तो महंत किसे कहेंगे ? जहाॅं संस्था , वहाॅं झगडे ये पक्की बात है । ये सब करना था तो चक्रवर्ती दिक्षा क्यों लेते ? परमात्मा के श्रमण का ये लक्ष नही , ये उसका मार्ग नही । सियार बनकर जिने में मजा नही लेकिन आज सियारों के बिच षेर की आवाज दब गई है । जिना ओर मरना शेर बनकर । मोक्ष का लक्ष शरीर को सुखी करना नही । धर्मका लक्ष है संसार सुखी करना नही । धर्म का लक्ष है संसारी जीव को पाप से मुक्त करना । धर्म के रास्ते पर चलकर सुखी हो जाता है , लेकिन सुखी करना ये लक्ष नही । धर्म का लक्ष है सिध्द करना , मुक्ति दिलाना । परमात्मा निर्वाण चर्चा में शेर है ।
वीर लोकाशाह जयंती के साथ ही चातुर्मास का समापन हुआ I अहमदनगर की और प्रस्थान करते हुए उपाध्याय श्री आदि ठाना दिनांक ५ अक्तूबर को बेगम पेठ श्री अशोक जी कोठारी के यहाँ पर विराजेंगे I रविवार को यहाँ पर आखिल भारतीय आनंद तीर्थ धर्म संघ द्वारा उपाध्याय श्री के त्रय नगर यात्रा दौरान सहयोगी सभी कार्यकर्ताओं का अभिनंदन तथा कृतज्ञता समारोह का आयोजन किया है I संत वृन्द ६ नवम्बर को श्री मोतीलाल जी भलगट , खेर्ताबाद के प्रांगण में पधारेंगे तथा शाम को बंजारा हिल्स स्थित किमती परिवार के निवास स्थान पर विराजेंगे I आगे कुकुट पल्ली , मियाँ पुर की और विहार होगा I ये जानकारी मंच संचालन करते हुए चेअरमन श्री संपत राज कोठारी ने दी I
उपाध्याय श्री आदि ठाणा 2 चातुर्मास पष्चात आचार्य आनंदऋषीजी म.सा. की जन्मभूमि ग्राम चिचोंडी , जिला अहमदनगर महाराष्ट्र की ओर प्रस्थान करेंगे । उपाध्याय श्री के मार्गदर्शन से चिचोंडी में प्रस्तावीत ‘आनंदतीर्थ’ प्रकल्प के पहले चरण में ‘आनंद गुरूचरण तीर्थ’ का गुरू चरणों में समर्पण समारोह दिनांक 17 डिसंबर को आयोजीत किया जा रहा है ।