निवेदन
जिन शासन के चमकते सितारे, जन-जन के प्यारे,
आँखों से बरसती अविरल करुणा की फुहारें,
अरमान जिनके
ज्यारे, एक ही प्रण के प्राण धारे,
सुखी रहे सब जीव जगत के धर्म पथ घारे।
एक अनोखा मसीहा, एक अनोखा पुरुषार्थ, एक अनोखा वरदान, एक अनोखे भाग्य की धरोहर पायी है जैनियों ने बाबा आनंद के रूप में। ऐसे महामहिम का अनूठा जीवन भक्तों के लिए दिप स्तंभ बन गया है।
गुरू ही जिनके जीवन में सर्वेसर्वा है ऐसे गुरू समर्पित परम शिष्य के भक्त भी उतने ही समर्पित बन गए। गुरु की आँखें जिनकी खुद की आँखें बन गयी, गुरु के सपने जिनके खुद के सपने बन गए, उन भक्तों द्वारा एक दिव्य भव्य प्रकल्प का आयोजन आचार्य भगवंत की जन्मस्थली चिर्चोड़ी में 35 एकड़ जमीन पर होने जा रहा है यह सारे भारतवासियों के लिए अत्यंत गौरव की बात है।
पालिताना, शंखेश्वर जैसे अनेक तीर्थ हमारे पुरखों ने बनाएँ, जहाँ पर हमारे आराध्य देवों की स्मृतियों का दर्शन हमें होता हैं, हमारा जैन इतिहास इन तीर्थक्षेत्रों के कारण उजागर हो रहा है। उनके समर्पण की अमानत हमारे पास तीर्थक्षेत्र के रूप में हैं। 20 वीं सदी के दिव्य पुरुष की स्मृती में उनके अरमानों का ऐतिहासिक तीर्थक्षेत्र आनेवाली पीढ़ियों के लिए अनमोल देन रहेगी। इस सप्ततीर्थें की यात्रा पवित्र स्वप्नदर्शन की पूर्ती बनेगी।
परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्री आनंदऋविजी म. सा. का जीवन बीसमी सदी के हर पृष्ठ पर अंकित ही नहीं बल्की उनके जीवन हस्ताक्षरों से उन्होंने बीसवीं सदी का नया इतिहास लिखा। उनके चरणों ने धर्म चरण के मंगलमय पथों का, व्यवस्था का निर्माण किया। श्रद्धा के आकाश में ऐसे श्रद्धेय पुरुष को संप्रदाय, भाषा, परंपरा की कोई दिवार उनके आलोक को, प्रकाश को अवर्तध्द न कर पायी।
ऐसे सिध्द युगपुरुष ने जहाँ जन्म लिया वह धरती भक्तों के लिए असीम आस्था, समर्पण का आनंद तीर्थ हैं। आनंद जन्मभूमी चिचोंडी को तीर्थक्षेत्र के रूप में महाराष्ट्र शासन ने घोषित किया है।
आओ ऐसे आराध्य गुरुदेव की आनंद जन्मभूनी को एक ऐसे 'तीर्थ' के रूप में निर्माण व विकसित करे कि सदियों तक आनंद दृष्टी से मानवता की दैवीय सृष्टी होती रहे। आनंद चरण से आनंद आचरण की पावन गंगा प्रवाहित होती रहे। जो दुःखहर्ता, सुखकर्ता, विघ्नहर्ता, मंगलकर्ता हो। ताकी व्यक्ति परिवार एवं संघ समाज की समस्याओं पर सर्वागीण मंथन एवं संशोधन हो। युगानुरूप परिणाम समाधान का पावन प्रसाद सबको उपलब्ध हो। इसलिए आराध्य की जन्मभूमी पर आनंद सप्ततीर्थ की संकल्पना प्रस्तुत हैं।
तीर्थ निर्माण का सौभाग्य सदियों में कभी-कभी ही मिलता है।
हमारा सौभाग्य है कि ऐसे तीर्थ के निर्माण की साक्षी एवं सक्रिय योगदान देने का अवसर हमारे द्वार पर दस्तक दे रहा है। इस दस्तक को सुने एवं जीवन गौरव अनुभूती ले।
आओ सदियों में मिलने वाले तीर्थ निर्माण के सौभाग्य को सच में बदलकर इस तीर्थ के निर्माता बने।
श्रध्दा तीर्थ
- नवकार तीर्थ: पंचपरमेष्ठी आराधना का, महामंत्र का शक्तीपीठ जहाँ साधक के जीवन की विविध समस्याओं के समाधान के लिए विशिष्ट साधना, अनुष्ठान की व्यवस्था होगी। ध्यान, आत्मशुध्दी एवम् महामंत्र सिध्दी की साधना व्यवस्था होगी। वहाँ ना पूजा होगी-ना अवडंबर-ना आरंभ सभारंभ होगा केवल श्रध्दा के जागरण पोषण की व्यवस्था होगी।
- श्रुतपीठ: परमपीता तीर्थकर भ. महावीर के चरम परम दिव्य देशना को विश्वव्यापी बनाने के लिए होगा - उत्तराध्ययन श्रुतपीठ। जिसमें समस्याओं के समाधान प्राप्त करने की, मार्गदर्शन लेने की, आराधना की अभिनव पध्दती होगी। प्रभु की दिव्य वाणी का परमऐश्वर्य अनुभुत करानेवाला यह श्रुतपीठ होगा।
- गुरु चरणतीर्थ: परमश्रद्धेय आचार्य भगवंत पू. गुरूदेव के भावचरणों में श्रध्दा भक्ती-समर्पण के लिए होगा गुरु चरणतीर्थ। जिसमें शुभ्र शुद्ध उज्ज्वल स्फटिक में आचार्य भगवंत के चरण कमलों का स्पर्श होगा। लांछनयुक्त गुरु चरण पीठ होगा। जो पूज्य गुरुदेव के स्फटिक सम जीवन को साक्षात करने के लिए शुभ्र ज्योत्सनामय होगा। जिसे देख पू. गुरुदेव के निर्मल पवित्र चरित्र एवं शरण्य चरणों की अनुभूति होगी। पू. गुरुदेव के कमल मत्स्य आदी शुभलक्षण से युक्त यह गुरू चरण तीर्थ आनंद आचरण की अनुभूति कराएगा।
संस्कार तीर्थ
अशुभ संस्कारों का विसर्जन शुभ संस्कारों का सृजन एवं आत्मबोध का जागरण इस त्रिसूत्री का संयोजन याने संस्कार तीर्थ
- पुरुषाकार ध्यान साधना व रिसर्च सेंटर: आत्मशक्ति जागरण के लिए आत्मरूप साक्षात्कार की सहज प्रक्रिया है पुरुषाकार ध्यान साधना। इस सहज सरल ध्यान साधना पध्दती का प्रशिक्षण एवं उसके शारिरिक, मानसिक परिणामों पर विज्ञान आधारित संशोधन इसमें होगा।
- अष्टमंगल ध्यान साधना: अष्टमंगल ध्यान साधना द्वारा अशुभ संस्कारों का, नकारात्मक शक्ति का- शुभसंस्कारों में सकारात्मक शक्ति में रूपान्तरण की प्रक्रिया का प्रशिक्षण संशोधन होगा।
- अर्हम् मंत्र ध्यान साधना: अर्हम् मंत्र ध्यान साधना द्वारा मंत्र साधना योग सर्वांगीण प्रशिक्षण प्रयोग साधना एवं संशोधन होगा।
- साधु स्थानक
- साध्वी स्थानक
विधान तीर्थ
- विधान रिसर्च सेंटर: व्यक्ति, परिवार एवम् समाज के सर्वांगीण विकास के लिए केंद्रिय व्यवस्था संचालन का ऐसा केंद्र अनिवार्य होता है जो श्रध्दा, संयम एवम् समर्पण से संचालित हो। आज जैन समाज विशेषतः स्थानकवासी समाज के लिए ऐसे "तीर्थ" की अनिवार्य अवश्यकता है, जो व्यक्ति, परिवार एवम् समाज को सबल दे, पोषण दे, सुरक्षा कवच दे, निमंत्रण तथा नियोजन करे।
- गृहस्थ धर्म (श्रावक श्राविका आगार धर्म) साधना प्रशिक्षण, गर्भसंस्कार, धर्मबोधी आदि कार्यक्रमों का संचलन एवम् संशोधन केंद्र का निर्माण किया जाएगा।
- प्रकाशन केंद्र: जैन संत एवम् प. पू. उपाध्याय प्रवीणऋषिजी म. सा. के प्रवचन तथा साहित्य को प्रकाशित करके समाज के पास पहुँचाने का कार्य किया जाएगा।
सेवा तीर्थ
- गौतमलब्धी प्रतिष्ठान संचलित सेवा, शिक्षा, विकास एवम् आवास व्यवस्था का संचालन यहाँ से होगा। गौतमलब्धी कलश उपलब्ध होगा। आनंदतीर्थ में आनेवाले हर व्यक्ति को मानव सेवा की विशाल योजना में सहभागी करने की व्यवस्था होगी।
- मानव सेवा के विविध उपक्रम जैसे चिकित्सालय, विकासपीठ (परिवार विहिन बालक-बालिकाओं के लिए एवं भाई बहनों के लिए)
- तीर्थ में आनेवाले भक्तगणों के लिए अतिथीगृह, भोजनशाला आदि का निर्माण किया जाएगा।
- तीर्थ में आनेवाले भक्तगण, कर्मचारी तथा चिचोंडी परिसर के नागरिकों के लिए प्राथमिक आरोग्य केंद्र का निर्माण किया जाएगा।
अमृत तीर्थ
- अनुभवी वृध्दजनों की सेवा साधना सुरक्षा के लिए अमृत तीर्थ का निर्माण किया जाएगा।
- संलेखना भवन का निर्माण किया जाएगा। जिसमें वेदना विहिन शांतीपूर्ण अंतिम समय की शिखर साधना की व्यवस्था होगी।
ज्ञान/विद्या तीर्थ
प्रभु महावीर शाश्वत सर्व मंगलकारी तत्वज्ञान को युगानुरूप भाव भाषा में विश्वव्यापी बनाने के लिए:
- ग्रंथालय: जैन धर्म दर्शन एवं अन्य सभी धर्म दर्शन परंपराओं के सभी ग्रंथों का संकलन करके अध्ययन एवम् संशोधन के लिए अत्याधुनिक ग्रंथालय का निर्माण।
- साधु-साध्वी शिक्षण प्रशिक्षण केंद्र
- कल्याण मित्र प्रशिक्षण: धर्मप्रचारक, धर्मशिक्षक, स्वाध्यायी प्रशिक्षण शैक्षणिक प्रकल्प: गुरुकुल, स्कूल, कॉलेज, तकनिकी एवम् करस्पॉन्डन्स् एज्युकेशन।
कला तीर्थ
- आनंद कला पीठ: जैन धर्म, दर्शन इतिहास एवम् गुरुदेव की जीवनगाथा की कलात्मक प्रस्तुति।
- धर्म सभा मंडप
- तप पीठ: वर्षीतप, आयंबील एवं विविध तपानुष्ठान के लिए तप पीठ का निर्माण होगा।
आनंद तीर्थ में ऑडिटोरियम, स्वागत कक्ष एवम् कार्यालय, अहिंसा उद्यान, कर्मचारी निवास आदि सुविधा का भी निर्माण किया जाएगा।
परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत का व्यक्तिमत्व, कतृत्व बहुआयामी था वैसे ही आनंद तीर्थ बहुआयामी होगा। युगानुरूप सदियों तक प्रभु महावीर एवम् आचार्य भगवंत की दिव्य सर्व कल्याणकारी संदेश से प्रचारित एवम् प्रस्तुती का यह तीर्थ मानव समाज के सर्वांगीण विकास के लिए सतत गतीशील रहेगा।
दान योजना:
आप इस महान तीर्थक्षेत्र के निर्माण कार्य में सहभागी होकर इस प्रकल्प के संस्थापक बन सकते हो।
आधार स्तंभ सदस्य रू. 1,00,00,001/-
आप संस्था को रू. 1,00,00,001/- (रू. एक करोड़ एक सिर्फ) का दान संकलित करके संस्था को समर्पित करके संस्था के आधार स्तंभ सदस्य बन सकते हैं, जिसमें:
- आप संस्था के तहहयात सदस्य रहेंगे। आपके पश्चात आपके नॉमिनी संस्था के आधार स्तंभ सदस्य बन सकते हैं (वंशपरंपरागत)।
- आपका नाम संस्था के प्रवेशद्वार के सामने आधार स्तंभ की तख्ती पर लिखा जायेगा (3 फुट X 2 फुट)
- आधार स्तंभ सदस्यों से तीन सदस्य संस्था के कार्यकारिणी पर चुनें जायेंगे।
प्रमुख स्तंभ सदस्य रू. 51,00,001/-
आप संस्था को रु. 51,00,001/- (रू. इक्यावन लाख एक सिर्फ) का दान संकलित करके संस्था को समर्पित करके संस्था के प्रमुख स्तंभ सदस्य बन सकते हैं, जिसमें:
- आप संस्था के तहहयात सदस्य रहेंगे। आपके पश्चात् आपके नॉमिनी संस्था के प्रमुख स्तंभ सदस्य बन सकते हैं (वंशपरंपरागत)।
- आपका नाम संस्था के प्रवेशद्वार के सामने प्रमुख स्तंभ सदस्य की तख्ती पर लिखा जायेगा। (3 फुट x 1 फुट)
- प्रमुख स्तंभ सदस्यों से दो सदस्य संस्था के कार्यकारिणी पर चुनें जायेंगे।
आश्रयदाता सदस्य रू. 11,00,001/-
आप संस्था को रू. ११,००,००१/- (रू. ग्यारह लाख एक सिर्फ) का दान संकलित करके संस्था को समर्पित करके संस्था के आश्रयदाता सदस्य बन सकते हैं, जिसमें:
- आप संस्था के तहहयात सदस्य रहेंगे। आपके पश्चात् आपके नॉमिनी संस्था के प्रमुख स्तंभ सदस्य बन सकते हैं।
- आपका नाम संस्था के प्रवेशद्वार के सामने आश्रयदाता सदस्य की तख्ती पर लिखा जायेगा। (3 फुट X 3 इंच)
- आश्रयदाता सदस्यों से पाँच सदस्य संस्था के कार्यकारिणी पर चुनें जायेंगे।
आजीवन सदस्य रू. 2,00,001/-
आप संस्था को रु. २,००,००१/- (रू. दो लाख एक सिर्फ) का दान संकलित करके संस्था को समर्पित करके संस्था के आजीवन सदस्य बन सकते हैं, जिसमें:
- आप संस्था के तहहयात सदस्य रहेंगे।
- आपका नाम संस्था के प्रवेशद्वार के सामने आजीवन सदस्य की तख्ती पर लिखा जायेगा।
- आजीवन सदस्यों से पाँच सदस्य संस्था के कार्यकारिणी पर चुनें जायेंगे।