दैनंदिन जीवन में मनुष्य का व्यवहार कई बार समता की सीमाओं का उल्लंघन कर जाता है। वह मोह और कषायों से आवेष्टित होकर स्वयं के साथ तथा दूसरे प्राणियों एवं मनुष्यों के साथ सम, सरस, और निष्पक्ष व्यवहार नहीं कर पाता है। अपने व्यवहार की इन विषमताओं को घटाने तथा समाप्त करने के लक्ष्य से सामायिक की आराधना की जाती है। इस प्रकार सामायिक एक आध्यात्मिक साधना होने के साथ ही जीवन व्यवहार को संतुलित एवं प्रभावशाली बनाने का निरापद उपाय भी है।
सामायिक से आत्मा की सुप्त शक्तियों का जागरण और व्यक्तित्व का रूपांतरण होता है। सामायिक साधना का शुभारंभ भी है और साधना की निष्पत्ति भी। गुरुदेव ऋषि प्रवीण सामायिक के प्रत्येक सूत्र और विधि बहुत ही कुशलता से उद्घाटित करते हैं। वे हमें अतिचार व दोष, आलोचना व प्रतिक्रमण आदि समानार्थी लगाने वाले शब्दों के भिन्न अर्थ, यथार्थ अर्थ का बोध कराते हैं।