ARHAM VIJJA – ARHAM ASHTAMANGAL

ARHAM VIJJA – ARHAM ASHTAMANGAL
अष्टमंगल की ध्यान साधना एक सहज ध्यान की प्रक्रिया है। इसमें केवल आकृतियों का ध्यान बोधपूर्वक किया जाता है। जिस आकृति का हम ध्यान करते हैं वह भाव अंदर में जागृत होने लग जाते हैं। जैसे भाव जागृत होते है, वैसे ही स्वभाव बनता जाता है। यह रूपान्तरण, यह परिष्कार बहुत चमत्कार जैसा लगता है।
लेकिन यह ध्यान साधना वास्तविकता है, और इस वास्तविकता का अनुभव करने के लिए किसी भी जाति-धर्म-भाषा-सम्प्रदाय का किसी भी उम्र का, क्षेत्र का, समय का कोई बंधन नहीं है। जैसा आकाश सबको उपलब्ध है, सूर्य सबको उपलब्ध है, वैसे ही यह अष्टमंगल ध्यान साधना सबके लिए सहज-सरल-सुगम उपलब्ध है। इसका प्रशिक्षण 2003, इंदौर से प्रारम्भ हुआ|
जीवन की उलझनों में ये अष्टमंगल – स्थापना मंगल, भाव मंगल बनकर साधक को बहुआयामी समाधान देते है। आप सभी को आमंत्रण है – एक ऐसी साधना सीखने के लिए जो कभी निष्फल नहीं जाती।
WHY TO DO THIS COURSE?
PROCESS/VIDHI
अष्टमंगल ये आठ मंगल है। ये अष्टमंगल जीवन की आठ समस्याओं के समाधान के लिए हैं।
- जीवन का भावनात्मक, वैचारिक, बौद्धिक सबंधों का जो संतुलन टूटा हुआ है उसे संतुलित करने के लिए स्वस्तिक मंगल की साधना।
- जीवन में परिवर्तन लाने के लिए श्रीवत्स मंगल का ध्यान।
- जीवन के प्रवाह को निराबाध बनाने के लिए एवं अंदर के सारे अवरोध दूर करने के लिए, अंतर के सारे स्थापकता समाप्त करने के लिए मत्स्य-युगल का ध्यान।
- अंदर की शक्ति का ऐसा चरित्र निर्माण करने के लिए जो निरंतर सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए समर्थ बने और अंदर की नकारात्मक ऊर्जा उसकी क्षीण होती जाए, उसके लिए सम्पुष्ट मंगल का ध्यान।
- अंदर की सारी सुख-सम्पदा को अक्षुण्ण और सुरक्षित रखने के लिए। चाहे ज्ञान की, भावना की या चाहे संबंधों की हो। जो रिसाव (leakages) है, उन रिसावों (leakages) को समाप्त करने के लिए कलश की साधना।
- अंतर के दुःख के चक्र को समाप्त करके आनंद के चक्र चलाने के लिए। ज्ञान, भावना, क्रिया, संबंध, और चिंतन में – इन पाँचों ही आयामों पर आनंद की अनुभूति कराने के लिए नंदावर्त।
- अपनी हर अवस्था को मांगल्य रूप में स्थापित करने के लिए मांगल्य की हर अवस्था में अनुभूति करने के लिए भद्रासन का ध्यान।
- और स्वयं के व्यक्तित्व को पारदर्शक (Transparent) बनाने के लिए, पारदृष्टा बनाने के लिए दर्पण मंगल का ध्यान।
