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महावीर गाथा बनी दर्शन से जुड़ने और प्रभु को समझनें की पाठशाला

प्रतिदिन उपाध्याय प्रवीणऋषि म. सा से मिले ऐसे प्रेरक संदेश जो बदल सकते हमारा जीवन

भीलवाड़ा – पहली बार हुई महावीर गाथा हम सभी की जीवनयात्रा की धारा बदलने वाली है। महावीर गाथा को स्वर प्रदान करने वाले पूज्य उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषिजी मसा. ने 7 अप्रेल से आजाद चौक में रात 8.30 से 10 बजे तक चली महावीर गाथा के माध्यम से जो संदेश दिया उसके कुछ अंश भी हम अपने जीवन एवं सामाजिक व्यवस्थाओं में अंगीकार कर सके तो हम उन कई समस्याओं एवं चुनौतियों के चक्रव्यूह से बाहर निकल सकते है जो हमे अभी तनावयुक्त बनाए हुए है। महावीर गाथा का विधिवत आगाज होते ही उपाध्याय प्रवर ने स्पष्ट कर दिया था कि ये महावीर का प्रवचन नहीं महावीर की उसी तरह गाथा है जिस तरह भागवत कथा और रामकथा होती है।

महावीर गाथा भगवान महावीर बनने और महावीर से जुड़ने की कथा है। एक बार महावीर से जुड़ गए तो महावीर का धर्म तो स्वतः आ जाएगा। उपाध्याय प्रवीणऋषि ने ये भी साफ शब्दों में कह दिया कि महावीर गाथा दिल से सुनेंगे तो जीवन बदल जाएगा और कानों से सुनेंगे तो जैसे थे वैसेे ही रहेंगे। अब जिन्होंने दिल से सुनी उनके जीवन में बदलाव तो अवश्य होंगा ही। गुरूदेव की वाणी ऐसी थी कि हजारों सहभागियों में से कोई कानों से सुनने की सोच कर आया होगा तो वह भी उसके असर से अपने दिल के ताले खोल महावीर भक्ति को अपने ह्दय से लगा बैठा। महावीर गाथा में जो प्रेरक संदेशों की पाठशाला बन गई। एक सप्ताह चली इस गाथा के दौरान जो प्रमुख प्रेरक संदेश निकल कर आए उनमें से कुछ इस तरह है।

मत करो दुःख बढ़ाने वाले कार्य

दुःखी आदमी दूसरों को भी दुःखी करता है जबकि सुखी आदमी दूसरों को भी सुखी बनाता है। जिस पल तुम अपने सेवक पर जुल्म करते हो अपने लिए नरक के बीज बोते हो। सामने वाला गुस्सा करें तो वह दुःखी है ये मान उसे और दुःखी मत करो। कभी दुःख बढ़ाने वाले कार्य मत करो।

नाम रखने का निर्णय करने का अधिकार माता का

आने वाले जीव का क्या नाम रखना है इसका निर्णय करने का अधिकार उस माता का है जो उसे नौ माह अपने गर्भ में रखती है। जब वह नौ माह जो अहसास किया उस आधार पर उसका नाम रखती है तो वह नाम नहीं वरदान हो जाता है।

नाम रखने का निर्णय करने का अधिकार माता का

आने वाले जीव का क्या नाम रखना है इसका निर्णय करने का अधिकार उस माता का है जो उसे नौ माह अपने गर्भ में रखती है। जब वह नौ माह जो अहसास किया उस आधार पर उसका नाम रखती है तो वह नाम नहीं वरदान हो जाता है।

रिश्ते बनाना-बिगाड़ना व्यक्ति के हाथ में

रिश्ते भाग्य की सौगात नहीं होते रिश्ते कर्म का खेल होते है। रिश्ते बनाना-बिगाड़ना व्यक्ति के हाथ में है। जो रिश्ता संभाल लेता है वह प्रभु बन जाता है ओर जो न संभाल पाता है वह स्वयं भी शैतान बन जाता है ओर दूसरों को भी शैतान बनने के लिए मजबूर कर देता है। रिश्ता कभी टूटता नहीं बस उसका चरित्र बदल जाता है। दोस्ती का रिश्ता दुश्मनी का हो जाता है।

घर में किसी को मुरझाया चेहरा लेकर मत सोने दो

घर के प्रमुख को संकल्प लेना चाहिए कि रात में सोते समय घर के किसी सदस्य का चेहरा मुरझाया हुआ नहीं हो। कोई भी सदस्य किसी तरह का शिकवा-शिकायत या कोई दर्द लेकर न सोए। घर में कोई मुरझाया चेहरा लेकर सोएगा तो रातभर बद्दुआ चलती रहेगी। घर को आग लगती है घर के चिराग से इसलिए घर में किसी को शिकवे-शिकायत लेकर मत सोने दो।

अच्छ काम का मिलता है पुण्य

हर अच्छे काम का पुण्य अवश्य मिलता है चाहे वह मजबूती से हो या मजबूरी में किया गया हो। मजबूती से करेंगे तो प्रभु मिलेंगे और मजबूरी में करेंगे तो सुख के साथ डायबिटिज भी मिलेगी। पिछले जन्म में मजबूरी में अच्छा काम किया तो सुख तो मिलता है लेकिन सुखी नहीं होता है। पिछले जन्म में मजबूरी में पाप करने वाले को दुःख तो होता है लेकिन वह धर्मी बन जाता है।

दुश्मन को गले लगाना वाला बन जाता मुक्तिदूत

जो दुश्मन को गले लगाकर दोस्त बना लेता है वहीं मुक्तिदूत हो सकता है। धर्म वहीं है जो दुश्मन को दोस्त बना ले और अधर्म वहीं है जो दोस्त को दुश्मन बना देता है। देव-गुरू के सामने अहंकार करने वाले की साधना श्मसान में बदल जाती है। जिसके साथ दिल का रिश्ता जुड़ जाए वह दोस्त और जिसकी बात दिल को चुभ जाए वह दुश्मन होता है।

पोनोग्राफी के कारण आने वाली पीढ़ी हो रही बर्बाद

आने वाली पीढ़ी पोनोग्राफी की लत लगने के कारण बर्बाद हो रही है। समाज की टीनएजर पीढ़ी इसके शिंकजे में फंस गई है वह चाहकर भी इससे बाहर नहीं निकल पा रही है। वर्तमान में चरित्र, इमोशन व रिश्ते को बीमार करने वाले नए-नए वायरस आ रहे है लेकिन समाज उसकी वेक्सीन खोजने का प्रयास भी नहीं कर रहा है।

महावीर रावण को मारते नहीं सुधारते है

महावीर वो नहीं होते जो रावण को मारे और महावीर वो नहीं होते जो सुधरना चाहे उसे सुधारे, महावीर तो वो होते है जो रावण को राम बनात और महावीर तो वो होते है जो तुम सुधरना चाहो या न चाहो तुम्हे सुधार कर रखते है। चण्डकौशिक सर्प नहीं सुधरना चाहता था तो भी महावीर उसे बदल कर रख देते है। जिंदगी ऐसी जीना की तुम्हे देख किसी का भोग योग में बदल जाए।

परमात्मा से जगत के दुःख दूर करने की करो कामना

परमात्मा से जगत की बजाय अपना दुःख दूर करने की कामना करते है इसलिए वह दूर नहीं होता। कामना ये करों कि मेरा जैसा दुःख त्रिजगत में जिसका भी हो दूर हो जाए उससे तुम्हारा भी दुःख दूर हो जाएगा। तीर्थंकर कोई जन्म से नहीं बनता वह तपकर बनना पड़ता है।

कोविड़ संक्रमण से भी खतरनाक गुस्से का संक्रमण

कोविड संक्रमण से अधिक खतरनाक गुस्से का संक्रमण है। कोविड से पहले गुस्से को क्वारंटाइन करने की जरूरत है।गुस्से को क्वारंटाइन नहीं करने पर गुस्सा करने वाला पूरे घर में घूमकर हर तरफ गुस्सा फैला देता है। पुराने समय में घरों में कोपभवन की व्यवस्था होती थी, जिसे गुस्सा आता था उसमें जाकर बैठ जाता था। परिवारवाले समझ जाते थे और उसे मना लेते थे।

हर परिवार व समाज का होना चाहिए प्रोटोकॉल

जिस परिवार व समाज में प्रोटोकॉल नहीं होता है वह कितनी भी उंचाई पर पहुंच जाए खाई में गिरने में देर नहीं लगती है और जहां प्रोटोकॉल होता है वह हर संकट व तूफान से बच निकलता है। जैनियों के पास डायमंड जैसे सिद्धांत एवं कैरेक्टर है लेकिन प्रोटोकॉल नहीं होने से दुनिया में सुनने वाला कोई नहीं है।

मोह जन्म लेने पर जिंदगी चक्रव्यूह में उलझ जाती

जब जीवन में शिष्य, पुत्र आदि किसी के लिए मोह जन्म जाता है तो जिंदगी चक्रव्यूह में उलझ जाती है। प्रभु से ज्यादा शिष्य प्यारा हो जाता है इससे बड़ी यातना क्या हो सकती है। तुम और किसी को भटकाओंगे तो तुम्हे भी भटकना पड़ेगा। तुम किसी को राह दिखाओंगे तो तुम्हे भी राह दिखाने वाले मिल जाएंगे।

जिंदगी में सिद्ध बनने के लिए सपने साकार करना सीखो

अपने सपनों को जो जगा लेता है उसके अरमान पूरे हो जाते है और अपने सपनों को जो सुला देता है उसका भाग्य भी सो जाता है। तुम कौनसे सपने देखते हो इस पर नियंत्रण है तो तुम अपने भाग्य के मालिक हो और जो दिख जाए वह देख लिया तो गुलाम हो। सपने देखने की कला आ जाए तो सपने सच हो जाते है। जिनके सपने टूट जाते है वह स्वयं टूट जाता है।

देव, गुरू एवं माता-पिता के सामने अंहकार मत करना

अहंकार जाग जाने पर प्रभु को भूल जाते है।़ देव, गुरू एवं माता-पिता के सामने कभी अहंकार मत करना। ऐसा करने पर पूरी साधना राख हो जाती है। भक्ति के बल पर एकलव्य इतना सीख लेता है जितना द्रोणाचार्य अर्जुन को भी नहीं सिखा पाते है।भारतीय संस्कृति में चलन है चेले से गलती हो तो सजा गुरू को ओर बेटे से गलती हो तो सजा पिता को मिलती है।