पहिला दिन

जयकार जयकार गौतमकुमारा
जय बोलो जय बोलो भ्रात अठरा

दुसरा दिन

जयकारा जयकारा अनियसकुमारा
जय बोलो जय बोलो छ: सहोदरा

तिसरा दिन

जयकारा जयकारा गजसुकुमाला
जय बोलो जय बोलो हे ध्यानेश्वरा

चौथा दिन

जय देवी जय देवी जय पद्मावती
धन्य है रानी की समर्पित भक्ती

पाँचवा दिन

जयकारा जयकारा अर्जुन अणगारा
जय बोलो जय बोलो हे क्षमा वीरा

छठा दिन

जयकारा जयकारा अतिमुक्तकुमारा
धन्य हुई तेरी ओ बाल क्रिडा

साँतवा दिन

जयकारा जयकारा श्री जिनवरा
जय महाविर जय तीर्थंकरा
काली आदि रानीयोंका है तारा
तपस्यासे पाया भव किनारा
नब्बे महापुरुषोंका हुआ उध्धारा
सुनकर भवीजन करना सुधारा

आठवाँ दिन

पर्वाधिराज – क्षमा का ताज आरती सुरताज
प्रेरणा प.पु. प्रवीणऋषिजी म.सा. प्रस्तुति: आदिनाथ स्थानक, पुणे

जय सिध्दा, विजय सिध्दा, जय तित्थयरा हो जय तित्थयरा
लोगस्य उज्जोयगरा जय जिनवरा
जय सिध्दा, विजय सिध्दा, जय तित्थयरा हो जय तित्थयरा
लोगस्य उज्जोयगरा जय जिनवरा
जय सिध्दा, विजय सिध्दा, जय तित्थयरा
जय सिध्दा, विजय सिध्दा, जय तित्थयरा
लोगस्य उज्जोयगरा जय जिनवरा
जय सिध्दा, विजय सिध्दा, जय तित्थयरा हो जय तित्थयरा ।
लोगस्य उज्जोयगरा जय जिनवरा
जय सिध्दा, विजय सिध्दा, जय तित्थयरा हो जय तित्थयरा ।
देसु निम्मलयरा, तू तारणहारा हो तू तारणहारा
दु:ख, ताप, संताप भागे हमारा
दु:ख, ताप, संताप भागे हमारा
मुखमंडल देख हर्षे जग सार
हर्षे जग सारा
चरणों में वंदन, चरणों में वंदन,
करते त्रिवारा
जय सिध्दा, विजय सिध्दा, जय तित्थयरा
हो जय तित्थयरा ॥१॥

कृपा मेह बरसा अनुठा न्यारा
अनुठा न्यारा
तन – मन – जीवन भीगा जीसमें सारा
तन – मन – जीवन भीगा जीसमें सारा
प्रभू चरणों में तीर्थ है पाया
तीर्थ है पाया
जीवन का हर पल सार्थ है हुआ
सार्थ है हुआ
जय सिध्दा, विजय सिध्दा, जय तित्थयरा
हो जय तित्थयरा
लोगस्य उज्जोयगरा जय जिूवरा
जय सिध्दा, विजय सिध्दा, जय तित्थयरा
हो जय तित्थयरा
वंदेसु निम्मलयरा, तू तारणहारा
दु:ख, ताप, संताप भागे हमारा
मुखमंडल देख हर्षे जग सारा
चरणों में वंदन, चरणों में वंदन,
कृपा मेह बरसा अनुठा न्यारा
तन – मन – जीवन भीगा जीसमें सारा
प्रभू चरणों में तीर्थ है पाया ॥२॥

क्षमापणा

जहाँ जनम जनम के वैर भाव का होता है निस्तारा । ये दिन संवात्सरी प्यारा ये पर्व पर्युषण हमारा
जहाँ प्राणी मात्रसे प्रे भाव का जो करता है इशारा । ये दिन संवत्सरी प्यारा ये पर्व पर्युषण हमारा
जिन शासनं जिन शासनं……………॥धृ॥

चक्र की गती बतायी नहीं अंत आदि । सुखकर्ता दुखहर्ता मैत्रीकर्ता
षटचक्रों की यह रीत कही है आगे सुनना । ये दिन संवत्सरी प्यारा ये पर्व पर्युषण हमारा
जय शासनं जिन शासनं …………..॥१॥

अवसर्पिणी का छठा पुरा हुआ
जब हो गया दुन्खम दुन्खा
उत्सर्पिणी का पहला भी पुरा दुआ अतिशय सुखा सुखा
फिर बीजा या कहो चौथा जो ले आया सुख सिंगारा
ये दिन संवत्सरी प्यारा ये पर्व पर्युषण हमारा
जय शासनं जिन शासनं…………..॥२॥

तीजे आरेकी पहली सावण सूद पूनम जब आयी
अरि हर्ता सुखकर्ता दुखहर्ता मैत्रीहर्ता
जब सात दिवस की लगातार वर्षा सबके मन भायी
ये नीर क्षीर घृत अमृत नाम से बरसी वर्षा धारा
ये दिन संवत्सरी प्यारा ये पर्व पर्युषण हमारा
जय शासनं जिन शासनं …………॥३॥

हज्जारे वर्ष के बाद जमीपर हरियाली थी सरसी हरयाली
थी सरसी उनचास दिवस के बाद उदित हुआ पाचम का दिन
प्यारा
ये दिन संवत्सरी प्यारा ये पर्व पर्युषण हमारा
जय शासनं जिन शासनं…………॥४॥

हम तडङ्ख तडङ्खकर मरते थे और करते थे खुब झगडा
तब निसर्ग ने ही खुष हो करके मिटा दिया सब रगडा
मिटा दिया सब रगडा यु सोच महापुरुषोने उस दिन वैर
भुलाया सारा
ये दिन संवत्सरी प्यारा ये पर्व पर्युषण हमारा
जय शासनं जिन शासनं ……….||5||

यह विेश मैत्री का शुभ दिन को ध्यान जरुर है रखना
अरि हर्ता सुखकर्ता दुखकर्ता मैत्रीकर्ता
यह ऋ षिपंचमी कहने आयी खुद को खुद हि परखना
खुद को खुद हि परखना
उज्वल सुशील प्रितीमय बनकर चाहे आत्मसुधारा
ये दिन संवत्सरी प्यारा ये पर्व पर्युषण हमारा
जय शासनं जिन शासनं………..॥६॥

जहाँ जनम जनम के वैर भाव का होता है निस्तारा
ये दिन संवत्सरी प्यारा ये पर्व पर्युषण हमारा
जहाँ प्राणी मात्रसे प्रे भाव का जो करता है इशारा
ये दिन संवत्सरी प्यारा ये पर्व पर्युषण हमारा
जय शासनं जिन शासनं